आंगन
आंगन खुशियों से महकता सा
आंगन … दस्तकों से दमकता सा |
कभी उनकी आहट का सुकून देता
कभी उनके आने का सबूत देता |
अगले ही क्षण यूं कहने लगा
एकाकी सा मन कहने लगा…
चलो खावों का क्रम खत्म हुआ
हकीकत का दौर शुरू हुआ
और अब जंगलों सा वीरान है आंगन |