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10 Feb 2020 · 1 min read

आंख तेरी मेरी भर आई

मैं न समझा दर्द किसी का, तुम न समझे पीर पराई
अपने-अपने दुख को लेकर आंख तेरी मेरी भर आई ।
चंचल चंदा का चकोर चित सदा रहा पूनम का प्यासा
युगों-युगों से सहती आई विरह अमावस की तरुणाई ।
मरुभूमि की जलन जलाशय का आभास दिलाती मृग को
तृषित कामना के सागर से कब किसकी तृष्णा बुझ पाई ।
मेरे प्रिय का दिया हुआ तम सबसे प्रियतम निधि है मेरी
खिली धूप सा मुस्काया मैं जब सुधि की बदली कजराई।

लाख कहा समझाया शपथ दी व्यक्त न करना पीड़ा मन की
सुन कर जग ने कथा बना दी क्यों नैनों ने व्यथा सुनाई ।

2 Likes · 1 Comment · 373 Views
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