आंख ऊपर न उठी…
आँख ऊपर न उठी लाख उठाई मैंने
रस्मे-फुर्क़त बड़ी मुश्किल से निभाई मैंने
उसके जाने का अलम कैसे बताऊँ तुमको
जैसे इस जिस्म से हो जान गँवाई मैंने
उसकी तस्वीर ने फिर आज रुलाया मुझको
उसकी तस्वीर वो फिर आज छुपाई मैंने
अपनी आँखों में तेरा अक्स’ भरे बैठा हूँ
तुझ में खोकर भी सहा दर्दे-जुदाई मैंने
मेरे जज़्बात को समझोगे भला तुम कैसे
फिर न रोने की क़सम रो के है खाई मैंने
शिवकुमार बिलगरामी