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31 Aug 2017 · 1 min read

आँसू बहाते ही रहे

हादसों पर आप बस, लाशें गिनाते ही रहे
या मदद के नाम पर, आँसू बहाते ही रहे

था बड़ा वीभत्स मंजर रेल पलटी थी जहाँ
जो मदद के हाथ थे, सामाँ चुराते ही रहे

फस्ल थी तैयार बस बाकी रहा था काटना
एक चिंगारी गिरी, आँसू बहाते ही रहे

बाढ़ घुस आई घरों में हर तरफ पानी दिखे
प्यास से सूखे गले, आँसू पिलाते ही रहे

मौलवी ने पंडितों ने जहनियत ही कुंद की
नफरतों के आज सब परचम उठात हीे रहे

कृष्ण ने तो प्रेम की ही बात गीता में कही
तुम महाभारत में बस, आनंद पाते ही रहे

श्रीकृष्ण शुक्ल,
मुरादाबाद.

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