Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Aug 2023 · 4 min read

सरकारी

एक भारतीय औसत इंसान अपने जीवन काल मे एक सरकारी नौकरी करके जीवन की तमाम कठिनाइयों को पार करके बिताना पसंद करता है। इस सरकारी नौकरी के लिए वह ना जाने कितनी कोशिश करता रहता है,आप यह समझ सकते है कि जितनी सिद्दत से वह अपनी पत्नी और पति से प्रेम नहीं करेगा/करेगी, उतनी सिद्दत से वह अपनी नौकरी से प्रेम करेगा/करेगी,चाहे इस सिद्दत भरी कोशिशों में जीवन का रस ही क्यूं ना निकल जाए।

खैर इस बात को यही पर विराम देकर इसके सफ़र पर बात करना सही रहेगा,

अंशिका आज बहुत खुश हैं और अपनी खुशी होंठों पर जताने के साथ साथ पैरों पर भी बता रही है, आंखों में हल्की सी नमी लेकर किसी से मिलने की एक चाह लिए और हाथों मे एक छोटा सा गिफ्ट लिए पहुंच जाती है।

किताबो और पन्नो के साथ खोया हुआ जो लड़का दूर कौने में बैठा हुआ है। उसके पास अपने आप कब पहुंच जाती है ,अंशिका को खुद पता नही चलता।

ऋतिक समझ जाता है कि वो आ चुकी है लेकिन पन्नों के शब्दों में खुद को भुलाया हुआ अंशिका की तरफ ध्यान भी नहीं दे पाता। इस नजर न मिलाने का कुछ थोड़ा- सा अफसोस अंशिका को हो जाता है लेकिन अपने भाव को छुपाती हुई सामने बैठ जाती है और हल्की नमी भरी आंखों से ऋतिक की आंखों में मानो कुछ पलो के लिए डूबना चाहती है ।

ऋतिक शब्दों के अर्थों के इल्म को जानने मे कुछ इस तरह व्यस्त मानों अंशिका की आंखों की नमी उसको काले अक्षरों में भी नही दिखाई देती है।
इस बार पलको को झुका जब अंशिका आंखे खोलती है तो वो नमी गायब हो चुकी होती है।

और तभी ऋतिक कहता है बहुत सुंदर लग रही हो,काजल तुम्हारा अक्षरों जैसा है,बाल मानो जैसे मात्रा लगा रहे हो।

इतना सुनने के बाद,
अंशिका कुछ कहने को होती ही है कि इसी बीच वेटर आ जाता है

सर -ऑर्डर
ऑर्डर मैं कहा दे सकता हूं,सामने बैठी मैडम ऑर्डर देगी
अंशिका कुछ इस तरह ऑर्डर देती है मानो जैसे ऋतिक की पसंद को जानती हो – एक कप ब्लैक कॉफी और एक चाय।
तभी ऋतिक कहता है- आपने सुना,ऑर्डर मैडम का ही रहेगा हमेशा।

ऋतिक,
अंशिका को कुछ बताने ही वाला होता है कि अंशिका बीच मे बोल पड़ती है,जैसे ऋतिक का यहां बैठना उसको पसंद ना हो।
पूरे विश्वविद्यालय परिसर मे तुम्हे यही जगह क्यो मिलती है?
क्योंकि यही वह जगह है जहां पहली बार किसी का होना मुझे पाने जैसा लगा।ऋतिक यह जवाब कुछ इस तरह देता है जैसे सवाल उसको पता हो।
तुम और तुम्हारी बाते कभी समझ मे क्यों नहीं आती,इस बार अंशिका गुस्से मे कहती है।

गुस्सा जताना उसका हक भी बनता है

सुबह सुबह इतना तैयार होकर आई है जैसे कोई लड़का लड़की देखने आया हो और लड़का है कि अच्छे से देख भी नहीं रहा।

अंशिका चाहती है, थोड़ा ही सही लेकिन कुछ कीमती समय उसको भी मिले,जो ऋतिक अपनी किताबों को दिए जा रहा है।

इसी बीच ऋतिक,अंशिका की खामोशी को पहचान जाता है और फिर तारीफों का अंबार लगा देता है।
अंशिका तुम्हारी
आंखों का काजल बहुत अच्छा लग रहा है,मानो स्याही चित्र बना रही हो।
तुम्हारे बालों की खुशबू,
और यह हल्के गुलाबी रंग का तुम्हारा लिबाज़,किसी कलि के फूल बनने की तरफ ले जाता है।
तुम्हारी होंठ,इसके आगे कहने को होता ही है कि
अंशिका बोल पड़ती है,
क्या बना के रखा है तुमने,कभी स्याही,कभी खुशबू,कभी फूल। तुम लड़के एक जैसे होते हो बस।

अपनी रुकी हुई बात मे खोया हुआ ऋतिक अब कुछ भी नही कह पाता और शांति से ब्लैक कॉफी को पीना शुरू कर देता है।

बात, अब दोनों की आधी होती हुई कॉफी के साथ फिर से शुरू होती है।

ऋतिक कुछ बोलने वाला होता ही है लेकिन तब तक अंशिका अपने होंटो पर

“आधी बनी स्माइली”

को नजर अंदाज करती हुई बोलती है मैंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया तुम्हें बुरा लग गया होगा,तभी ऋतिक अंशिका की बात को बीच में रोकते हुए कहता है इसमें बुरा क्या लगना,मेरी स्याही काली है और उसमें खुशबू भी नही है, ना ही उससे रंगबिरंगे फूल बन सकते है। तुम्हारे सामने मेरे ये विशेषण कुछ भी नहीं है……

“अंशिका को जितनी खुशी आने मे हुई थी,उससे ज्यादा दुःख जाने में होने वाला था,

ऋतिक अपनी रह गई बात को आगे बढ़ाना चाहता है कि अचानक से अंशिका,ऋतिक के होंठों पर हांथ रख बोलने से रोक देती है और एक ऐसा सवाल सामने रख देती है कि ऋतिक अब कुछ भी ना कहने की स्थिति मे पहुंच जाता है,

“क्या तुम अभी मुझसे शादी करोगे?”

ऋतिक थोड़ी देर के लिए एकदम शांत हो जाता है,और अंशिका के सवाल का उत्तर उसके होंठों पर बनी आधी स्माइली को मिटाते हुए कहता है-तुम समझदार हो, ऐसे सवाल करके अपनी समझदारी को कम मत करो।
यह जीवन भर साथ निभाने की जिम्मेदारियां लेने मे,मैं अभी सक्षम नहीं हूं।

तुम जानती हो,मेरे पेपर पास आने वाले है,अभी कितना कुछ पढ़ने को रह गया है और इस बार का मौका मेरा आखिरी मौका हो सकता है ………………..आखिर यह सरकारी तैयारी है…………

अंशिका, ऋतिक के होंठों पर हाथ रख ऋतिक को बोलने से रोक देती है।

कुछ दिनों बाद अंशिका फिर से तैयार होकर बाहर आती है ,लेकिन इस बार आंखों मे नमी और हाथ मे गिफ्ट की जगह चाय से भरे कुछ कप होते है।

Language: Hindi
134 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
💐प्रेम कौतुक-334💐
💐प्रेम कौतुक-334💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ओम के दोहे
ओम के दोहे
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
"डोली बेटी की"
Ekta chitrangini
"सच्ची जिन्दगी"
Dr. Kishan tandon kranti
#परिहास-
#परिहास-
*Author प्रणय प्रभात*
Love
Love
Kanchan Khanna
दीवाने प्यार के हम तुम _ छोड़े है दुनियां के भी  गम।
दीवाने प्यार के हम तुम _ छोड़े है दुनियां के भी गम।
Rajesh vyas
सुकून ए दिल का वह मंज़र नहीं होने देते। जिसकी ख्वाहिश है, मयस्सर नहीं होने देते।।
सुकून ए दिल का वह मंज़र नहीं होने देते। जिसकी ख्वाहिश है, मयस्सर नहीं होने देते।।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
तुम ही सौलह श्रृंगार मेरे हो.....
तुम ही सौलह श्रृंगार मेरे हो.....
Neelam Sharma
3251.*पूर्णिका*
3251.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
चार कंधों पर मैं जब, वे जान जा रहा था
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
रेत सी इंसान की जिंदगी हैं
रेत सी इंसान की जिंदगी हैं
Neeraj Agarwal
एक बेटी हूं मैं
एक बेटी हूं मैं
Anil "Aadarsh"
'क्यों' (हिन्दी ग़ज़ल)
'क्यों' (हिन्दी ग़ज़ल)
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
आकाश महेशपुरी
रिश्ते
रिश्ते
पूर्वार्थ
*कोरोना- काल में शादियाँ( छह दोहे )*
*कोरोना- काल में शादियाँ( छह दोहे )*
Ravi Prakash
* माथा खराब है *
* माथा खराब है *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बचपन के पल
बचपन के पल
Soni Gupta
"अपेक्षा"
Yogendra Chaturwedi
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
न मैंने अबतक बुद्धत्व प्राप्त किया है
ruby kumari
एक दिवाली ऐसी भी।
एक दिवाली ऐसी भी।
Manisha Manjari
तुममें और मुझमें बस एक समानता है,
तुममें और मुझमें बस एक समानता है,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
अक्सर कोई तारा जमी पर टूटकर
अक्सर कोई तारा जमी पर टूटकर
'अशांत' शेखर
ज़माना
ज़माना
अखिलेश 'अखिल'
नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि,
नवरात्र के सातवें दिन माँ कालरात्रि,
Harminder Kaur
अब तो उठ जाओ, जगाने वाले आए हैं।
अब तो उठ जाओ, जगाने वाले आए हैं।
नेताम आर सी
न ख्वाबों में न ख्यालों में न सपनों में रहता हूॅ॑
न ख्वाबों में न ख्यालों में न सपनों में रहता हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
Loading...