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13 Nov 2019 · 1 min read

आँसुओं की जो बदली बनी

आँसुओं की जो बदली बनी
कुछ पल में ही बरसेगी घनी

रोक रखें हैं दिल के जज्बात
अब नैनों से बरसने की ठनी

कब तक सहेंगे जुल्मोसितम
सहने की हद हो है पार चली

सोच में सोचते ही रहें हैं हम
अब सोच भी हो लाचार चली

दिल की धड़कनें हैं बढ रहीं
जब जुदा होने की बात चली

दिल और ख्यालों में तुम्हीं थे
दिल्लगी मोहताज होने लगी

रातों को करवटें बदलते हम
यादों की यहाँ हैं तान छिड़ी

सिलवटें जो पड़ी बिस्तर पर
तड़फे रूह रातभर पड़ी पड़ी

बाहों की परिधि में जो हो तुम
कायनात बाँहों में है आन पड़ी

कदमों की आहट से जानेमन
गर्म सांसों की जैसे लगी झड़ी

आँसुओं की जो है बदली बनी
कुछ पल में ही बरसेगी घनी

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
411 Views
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