आँसुओं की जो बदली बनी
आँसुओं की जो बदली बनी
कुछ पल में ही बरसेगी घनी
रोक रखें हैं दिल के जज्बात
अब नैनों से बरसने की ठनी
कब तक सहेंगे जुल्मोसितम
सहने की हद हो है पार चली
सोच में सोचते ही रहें हैं हम
अब सोच भी हो लाचार चली
दिल की धड़कनें हैं बढ रहीं
जब जुदा होने की बात चली
दिल और ख्यालों में तुम्हीं थे
दिल्लगी मोहताज होने लगी
रातों को करवटें बदलते हम
यादों की यहाँ हैं तान छिड़ी
सिलवटें जो पड़ी बिस्तर पर
तड़फे रूह रातभर पड़ी पड़ी
बाहों की परिधि में जो हो तुम
कायनात बाँहों में है आन पड़ी
कदमों की आहट से जानेमन
गर्म सांसों की जैसे लगी झड़ी
आँसुओं की जो है बदली बनी
कुछ पल में ही बरसेगी घनी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत