आँचल
इसमे थोड़ा सुधार किया
विषय– आँचल
आज मेरी माँ की कमी
हर पल सताती रही ,
जब मैं धूल से खेलता
वो आकर कान झाड़ती रही ।
जब धूल का कण मेरी
आँखों मे उड़ जाता था,
मेरी माँ का आँचल ,
पास आकर सिहराता था ।
आज मुझे माँ की डांट ,
बहुत प्यारी लगती थी।
जब मुझे गुस्से से माँ ने
मुझे लकड़ी मारी थी ।
माँ के आंचल में बड़ी
अनमोल दौलत थी,,
जो मैं बड़ा हुआ उसी का
आँचल बड़ी बदौलत थी ।
रात में माँ अपने आँसू
न जाने क्यों छुपाती रही ,,
ओढ़ाकर आँचल मुझे प्यारी
लोरी सुनाकर सुलाती रही ।
बैठा कर अपने कंधे पर माँ ने
मैला जग का मुझे दिखाया था ,
समझ न सका माँ की ममता को
उसके आँचल ने मुझे हंसाया था
✍प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित मौलिक रचना
मोबाइल नंबर 9165996865