आँख भर जाये जब यूँ ही तो मुस्कुराया कर
आँख भर जाये जब यूँ ही तो मुस्कुराया कर
मनाना छोड़ कर क़िस्मत से रूठ जया कर
सुरमयी शाम कभी काली घटायें बन कर
ऐ तमन्ना तू मेरे द्वार पर मत आया कर
भाव ग्रंथों के लिए शब्द हीन सा हूँ मैं
मेरी बेटी तू बस चिड़िया सी चहक जाया कर
दिल ये नाज़ुक सा है मासूम पर नादान नहीं
तू इसे बार बार छू के मत सताया कर
बड़ी मुश्किल से मिला था वो पाँच का सिक्का
छिना वो और छिने बचपन को मत बुलाया कर
मुँह अंधेरे से आधी रात तक दौड़ा भागा
कभी तो दोस्तों के पास बैठ जाया कर
टूटी दीवार से वो इन्द्रधनुष का उगना
भर के मुट्ठी में रंग आँख में भर जाया कर
दिल की दहलीज़ पे कई बार बनायी हमने
जो रंगोली वो तू हर बार मत मिटाया कर
मंज़िलें छूट गयी फिर भी चल रहा हूँ मैं
आस का दीप हूँ हर रात जल रहा हूँ मै
तुम्हारी याद तो सोने के लिए काफी थी
तुम्हारी फिक्र में करवट बदल रहा हूँ मै
जब भी हँस लेता हूँ उनका सवाल होता है
नन्हे बच्चे की तरह क्यों मचल रहा हूँ मै
यह मेरा शौक है मजबूरी न कहिए इसको
अपनी हर ख़्बाइश को खुद ही मसल रहा हूँ
मैं बदलते दौर में दुनिया के साथ चल न सका
यह बात और है पल पल सँभल रहा हूँ मै
हाथ तो डालियों में फूल बीनते न थके
पैर से राह के कांटे कुचल रहा हूँ मैं
रिश्तों के बाज़ारों में अब महंगायी काफ़ी है
कम हो रहा सुकून दिलबुरायी काफ़ी है
सबसे उलझना छोड़ दिया हमने इसलिए
लड़ने को हमें अपनी ये तन्हाई काफ़ी है
उनको पराया मानने में उम्र लग गयी
वो कहते हैं दो दिन की बेरूखायी काफ़ी है
तिनका नहीं मैं एक समंदर हूँ सब्र का
शोलों के लिए तो मेरी गहराई काफ़ी है
सवेरा देखने को आँखें भी पड़ती हैं खोलनी
कैसे कहूँ सूरज की बस अगुआयी काफ़ी है
क़िस्मत बनानी पड़ती है मेहनत के रंग से
हाथों की लकीरों में बेवफ़ाई काफ़ी है
कुछ हाथ घिस रहे हैं बर्तनों पे फ़र्श पे
कुछ के लिए बस एक अंगडाई काफ़ी है
माँ बाप से मिलने की आज़ादी नहीं है अब
हुक्मरान बदलने को एक शहनाई काफ़ी है
जिसकी बदौलत उनके बढ़े वोट और सीटें
अपने मर जाने को वो रूसवायी काफ़ी है
शायर की पेशानी पे बोझ है ज़माने का
हंस देगा बस ख़य्याम की रूबायी काफ़ी है
कंचन गुप्ता
प्रवक्ता टी . एम . यू.
नारी तुम अपनी शक्ति सामर्थों का संधान करो
तुम पुरुषों से कहीं श्रेष्ठ हो सत्य तथ्य पहचान करो
इतनी कुशल प्रबंधक हो तुम , खंडहर को घर कर सकती हो
बिना पुरुष के पतिहीन भी बच्चों का पालन कर सकती हो
जन्म दिया जिस पुरुष सिंह को उसके संकट हर सकती हो
सीता बन कर राम को राम का नाम करो
तुम आदर्शों की प्रतिमा हो संस्कृति की रखवाली हो
थाली में भोजन के संग संस्कार परोसने वाली हो
वन वन भटकें वो जिनको अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं
तुम अपने निर्मल से मन में प्रेम रूप भगवान भरो
हे लक्ष्मी का रूप सरस्वती बन कर शिक्षा लो और दो
छोड़ के सहना जुल्मों सितम अब अपनी रक्षा स्वयं करो
उन पुरुषों से नाता तोड़ो जो महिला का अपमान करें
अपने बेटों को समझाओ नारी का सम्मान करें
माँ बहनो को गाली दें उन पुरुषों का परित्याग करो
निर्दोष अहिल्या की भाँति पाषाण तुम्हें नहीं होना है
जो दोषी को दंड न दे उस कायर की नहीं होना है
आँखों में अंगार भरो हाथों में शस्त्र उठा लो अब
लम्पट पुरुषों पर अब अपने शस्त्रों का संधान करो
मंज़िलें छूट गयी फिर भी चल रहा हूँ मैं
आस का दीप हूँ हर रात जल रहा हूँ मै
तुम्हारी याद तो सोने के लिए काफी थी
तुम्हारी फिक्र में करवट बदल रहा हूँ मै
जब भी हँस लेता हूँ उनका सवाल होता है
नन्हे बच्चे की तरह क्यों मचल रहा हूँ मैं।
यह मेरा शौक है मजबूरी न कहिए इसको
अपनी हर ख़्बाइश को खुद ही मसल रहा हूँ मैं
बदलते दौर में दुनिया के साथ चल न सका
यह बात और है पल पल सँभल रहा हूँ मै
हाथ तो डालियों में फूल बीनते न थके
पैर से राह के कांटे कुचल रहा हूँ मैं
कंचन
मावस के अँधियारों से जब करते दो दो हाथ
तारों से जगमग करते ये दीपक जल जल रात
अरे मनुज तू अँधियारों से घबरा कर रोता है
देख एक छोटा सा दीपक जल कर तम खोता है
काली रातें मावस की जग को स्याही से भरतीं
पर दीवाली वाली मावस जग उजियारा करती
तारे तो उस मावस में भी उतने ही उगते हैं
ये तो नन्हें दीपक हैं जो जग जगमग करते हैं
सबके द्वारे पर एक सुख का अखंड दीपक चमके
हरेक़ हृदय में सत्य कर्म की पावन विद्युत दमके
करो प्रकाशित घर और आँगन खूब मनाओ दीवाली
माँ लक्ष्मी हर जन को दें एक मुट्ठी ख़ुशियों वाली
HAPPY DEEPAVALI
अपने ग़म में मुस्कुराना छोड़ मत देना
दूसरों के ग़म पे रोना छोड़ मत देना
लोग तो ख़ुदगर्ज़ हैं ख़ुदगर्ज़ रहेंगे
तुम मदद को आगे आना छोड़ मत देना
लाख तूफ़ाँ आएँ टूटें आंधियाँ भर भर
दीप आशा के जलाना छोड़ मत देना
दौलतें हों , महफ़िलें हों, हों बड़े रुतबे
दुआ में सिर को झुकाना छोड़ मत देना
मसरूफ़ियत कितनी भी हो न मिलता हो आराम
मिलने अपने रब से जाना छोड़ मत देना
यात्री है मुड़के देखे ये ज़रूरी तो नहीं
तुम सही रास्ता बताना छोड़ मत देना
भूल जाना तो यहाँ फ़ितरत है सभी की
ज़ख़्म पर मरहम लगाना छोड़ मत देना
मूर्ति है टूट भी सकती है बिखर भी
तुम उसे ईश्वर बनाना छोड़ मत देना
खून के रिश्ते बनाना है उसी के हाथ
अपनो के घर आना जाना छोड़ मत देना
कल सुबह ये दीप कोई भी बुझा देगा
सोच कर दीपक जलाना छोड़ मत देना
मौक़े किसी के भी लिए फिर से नहीं आते
वक्त पर जोखिम उठाना छोड़ मत देना
जाने कब आएगी मंज़िल कब जुड़ेंगे क़ाफ़िले
रास्तों पर गुनगुनाना छोड़ मत देना
कब बड़ा होगा , फलेगा , फूल फल बरसाएगा
सोच कर पौधे उगाना छोड़ मत देना
मैं ही लाता रहता हूँ यह तो कभी लाता नहीं
सोचकर उपहार लाना छोड़ मत देना
देख कर ऊँचाई , लम्बी सीढ़ियाँ घबराओ मत
एक एक पग रखते जाना छोड़ मत देना
लोग तो बातें करेंगे , हँसेंगे , कभी जल जाएँगे
अपनी धुन में चलते जाना छोड़ मत देना
कौनसा मैं लौट कर इस राह से फिर आऊँगा
सोच कर काँटे हटाना छोड़ मत देना
माँगता है भीख करता है बहाने सौ नए
तुम दो सिक्के डाल देना छोड़ मत देना
अमीर था लेकिन जिया भिखारियों की ज़िंदगी
तुम दया से दिल झुकाना छोड़ मत देना
कंचन
ज़िंदगी रेत जैसी बिखरती रही
हम घरौंदों में उसको बँधाते रहे
सीपियों की तरह छोटी छोटी ख़ुशी
नन्हे बालक के जैसे उठाते रहे
एक सुनहरी किरण छू गयी प्रात को
रात भर ओस आंसू बहाते रहे
महफ़िलों में भी तनहा रहा मेरा मन
लोग हर पल ठहाके लगाते रहे
अब चुकाया है पूरा जमाने का मोल
सोच कर ग़म में भी मुस्कुराते रहे
ज़िंदगी तो जमाने की जागीर थी
हम भुलावे में अपनी बताते रहे
झूठी उम्मीद झूठे दिलासे थे सब
जो मेरी आँख में झिलमिलाते रहे
कंचन
ज़िंदगी रेत जैसी बिखरती रही
हम घरौंदों में उसको बँधाते रहे
सीपियों की तरह छोटी छोटी ख़ुशी
नन्हे बालक के जैसे उठाते रहे
एक सुनहरी किरण छू गयी प्रात को
रात भर ओस आंसू बहाते रहे
महफ़िलों में भी तनहा रहा मेरा मन
लोग हर पल ठहाके लगाते रहे
अब चुकाया है पूरा जमाने का मोल
सोच कर ग़म में भी मुस्कुराते रहे
ज़िंदगी तो जमाने की जागीर थी
हम भुलावे में अपनी बताते रहे
झूठी उम्मीद झूठे दिलासे थे सब
जो मेरी आँख में झिलमिलाते रहे
कंचन
ज़िंदगी रेत जैसी बिखरती रही
हम घरौंदों में उसको बँधाते रहे
सीपियों की तरह छोटी छोटी ख़ुशी
नन्हे बालक के जैसे उठाते रहे
एक सुनहरी किरण छू गयी प्रात को
रात भर ओस आंसू बहाते रहे
महफ़िलों में भी तनहा रहा मेरा मन
लोग हर पल ठहाके लगाते रहे
अब चुकाया है पूरा जमाने का मोल
सोच कर ग़म में भी मुस्कुराते रहे
ज़िंदगी तो जमाने की जागीर थी
हम भुलावे में अपनी बताते रहे
झूठी उम्मीद झूठे दिलासे थे सब
जो मेरी आँख में झिलमिलाते रहे
कंचन
छुपनछुपय्या नदी ले पहाड़ तुम्हें याद है ?
हमको वो बचपन वो बचपन का ज़माना याद है
बस्ते में रखकर गेंद और ग़ुट्टे सम्भाल कर
समय से पहले पहुँच कर लड़कियों के साथ में
एक कोने में कभी क़च्चीधूप कभी छाँव में
खेलना और दुनिया भर की बातें करना याद है
नाचना वो हम किसीसे कम नहीं के गीत पर
गाते फिरना वो विज्ञापन दूरदर्शन के सभी
एक चिड़िया अनेक चिड़िया ,वाशिंग पाउडर निर्मा
बुधवार की शाम का वो चित्रहार याद है
पाँव टिक्का खेलने को ढूँढना की रिंग कोई
कूदने को रस्सी घर की चारपायी खोलना
गर्मियों की दोपहर वो कॉमिक्स पढ़ना माँगकर
बालहँस, नंदन, चम्पक,पॉकेट बुक्स ढूँढना
मोटू पतलू चाचा चौधरी लम्बू छोटू याद है
कंचन
हर हाल में जीना आता है
मैं निजी स्कूल का शिक्षक हूँ
हर अपयश पीना आता है
मैं निजी स्कूल का शिक्षक हूँ
हर सुबह बिना कुछ खाए पिए
विद्यालय को चल पड़ता हूँ
दरवाज़े से ही अनुशासन में
रह कर आगे बढ़ता हूँ
विद्यार्थियों को अनुशासन में
रखना बहुत ज़रूरी है
पर बिना डाँट और मार पढ़ाना
शिक्षक की मजबूरी है
मैं सबकुछ जान और पढ़ कर भी
यहाँ गधा सा बन कर जीता हूँ
मिलता कुछ है लिखता कुछ हूँ
बस घाव जिगर के सीता हूँ
आने का तो निश्चित है समय
जाने का कोई टाइम नहीं
ना छुट्टी है ना तीज त्योहार।
मिलता कोई ओवर टाइम नहीं
कक्षा में छोटे बच्चे भी
मेरा मज़ाक़ कर लेते हैं
मैं उनके घर का नौकर हूँ
ऐसे जवाब दे लेते हैं
छोटी सी इस तनखा में जब
घर का राशन भी मुश्किल हो
तो ट्यूशन के अतिरिक्त भला
शिक्षक की कौनसी मंज़िल हो
घर आते ही बिन चाए पिए
मैं बैच पे बैच पढाता हूँ
इंसान नहीं कोई रोबोट हूँ
जो टॉलेट तक ना जाता हूँ
खाने नाश्ते का टाइम नहीं
बिगड़ी अब मेरी सेहत है
साथी शिक्षक भी सगे नहीं
ना घर में कोई राहत है
ऊपर से ये चुग़ली वाले
प्रिन्सिपल को जा भड़काते हैं
मेरा टाइम टेबल ख़राब करके
मुझे छोटी क्लास दिलाते हैं
अफ़सरों को मस्का लगाने को
टीचर का शोषण होता है
कभी नृत्य गान कभी रंगोली
शिक्षक दिन रात पिरोता है
एक कक्षा में सत्तर अस्सी से
भी ज़्यादा बच्चे होते हैं
टीचर गरमी में सड़ता है
सिर पंखे तक ना होते हैं
ऐसे में हर बच्चे पर कैसे
अलग ध्यान देवे टीचर
इतने सारे बच्चों का कैसे
रिज़ल्ट तैयार करे टीचर
उसमें भी भूल कहीं हो तो
कोई माफ़ी कहीं ना मिलती है
शिक्षक के हिस्से काम ही काम
कोई भूल चूक ना निभती है
दुनिया समाज और लोगों में
शिक्षक का कोई मान नहीं
है बड़ा निकम्मा ट्यूशनखोर
शिक्षक सा कोई बदनाम नहीं
ये न्यूज़ मिडिया वाले भी
शिक्षक के एंटी रहते हैं
बदमाश छात्रों को मासूम
शिक्षक को विल्लेन कहते हैं
शिक्षा अधिकारी आते हैं
रिश्वत ले कर चले जाते हैं
ना तनख़्वाह देखते ना सुविधा
ना शोषण को रुकवाते हैं
अब सोच रहा हूँ किमैं भी is
एक विद्यालय बनवाता हूँ
मुफ़्त के नौकर शिक्षक से
मैं भी सब कम कराता हूँ
हर हाल में जीना आता है
मैं निजी स्कूल का शिक्षक हूँ
कंचन
तुलसी के चौरे घर में लहराया नहीं करते
अब बिना मतलब कहीं जाया नहीं करते
मच्छरों ने हवा को दी है शिकस्त यूँ
कि छत पे हम सोने को हम जाया करते
इन्सानियत को अपना मज़हब मानने वाले
कुरान या गीता से भरमाया नहीं करते
ऐसे अनगढ रास्तों से हो के आये हैं
कि सीधे रस्ते अब हमें भाया नहीं करते
पतंगें अब कहाँ उड़ती हैं घर के आसमानों पर
अब मुंडेर पे चिड़ियों के झुंड आया नहीं करते
जब वक़्त पर न हाथ उठाया न बोले तुम
तो मन मन में खोने का मलाल लाया नहीं करते
हर मोड़ पर हैं घात लगाए लुटेरे यूँ
गलियों में बच्चे खेलने आया नहीं करते
अब डाइपर पहना के सो जाती है माँ सुख से
सो बच्चे गीला करके जगाया नहीं करते
अब दो मिनट की मैगी से खुश रहते हैं बच्चे
और माँ से खाना मांग सताया नहीं करते
कंचन
उलझन भरे सवालों का सुलझा जवाब हूँ
मुक़द्दर के अन्धेरों का सुर्ख़ आफ़ताब हूँ
पढ़ने के लिए लिख के छोड़ जाऊँगा एक दिन
एक लम्बी कहानी की मुकम्मल किताब हूँ
कहने और सुनने की उस हद तक गया हूँ
ख़ामोशियों का स्याह लरजता नक़ाब हूँ
शायद ही लगा पाए कोई इसका गुणा भाग
ज़रूरतों और ख़्वाहिशों का वो हिसाब हूँ
अपने बनाए रास्तों पे चलता रहा हूँ मैं
ख़राब था ख़राब रहूँगा ख़राब हूँ
कंचन
सब कूछ ही अपना दाँव पर लगा के रख दिया
बेबसी को सादगी बना के रख दिया
तू तो जीने ही क्या मरने के भी लायक न थी
हम हैं कि तुझे ज़िंदगी बना के रख दिया
मुश्किलों की आँधियों आ जाओ बुझा दो
दिल का चिराग़ बाल के चौखट पे रख दिया
हमारी डिक्शनरी में ब्रेक अप वर्ड नहीं है
सो हमने हरेक रिश्ता निभा करके रख दिया
दिल और दिमाग़ कर रहे थे मुझको परेशान
दिमाग़ में तब दिल को बसा कर के रख दिया
कोई न लाया मेरे लिए तारे तोड़ कर
मुट्ठी में अपनी आसमान भर के रख दिया
एक आँख को आँसू न सोने देते थे जब जब
एक आँख में सपनों को जगा कर के रख दिया
कंचन
अमावस है मगर चमचम परी है
ये रात कुछ जादू भरी है
दीप झिलमिल हैं जगमग घर द्वारे
रंगोली प्यार की आँगन सँवारे
अन्धेरों पर उजालों की झरी है
ये रात कुछ जादू भरी है
नए बच्चों में कौतूहल भरा है
दीवाली है ये कोलाहल भरा है
ख़रीदे बम पटाखे फुलझरी हैं
ये रात कुछ जादू भरी है
युवाओं में गजब का जोश भरती
बुज़ुर्गों के लवों पर हँसी बनती
कयी बिछड़ों के मिलने की कड़ी है
ये रात कुछ जादू भरी है
नयन में आस के दीपक जलाए
देवी के आगमन को घर सजाए
माँ कमला आज सबके घर चली है
ये रात कुछ जादू भरी है
दिए की रोशनी पहुँचे हृदय तक
हो मन और आत्मा तमहीन चंपक
दिवाली प्रेमधन की संचरी है
ये रात कुछ जादू भरी है
आपकी दीपावली आपके जीवन में सुख सम्पत्ति का प्रकाश भरे।
कंचन
कोई न सुन सके वह गीत कभी गाया क्या ?
कभी पूरा न हो वह ख़्बाब कभी आया क्या?
नक़ली फूलों के चटख शोख़ इरादों से कभी
कोई झोंका महक लेकर कभी इतराया क्या?
चलते चलते कभी थक जायें तमन्ना के कदम
कोई राही बढ़ी बाहों से करीब आया क्या ?
दर्द अपनों ने दिए आंख से आंसू न थमे
यूँही,हँस कर किसी अंजान ने बहलाया क्या?
कभी जुगनू ने शमा बन के अंधेरी गलियां
करके रोशन सही रस्ता कभी दिखलया क्या?
रास्ते में किसी मजलूम को कुछ दे देते
दिल में कई बार यूँही रंजो मलाल आया क्या?
कभी दर्पण में अपना आप बेगाना सा लगा?
कभी अपने ही दिल ने गैर बन ठुकराया क्या?
अपने दिल को अब दुखाना छोड़ दो
बेवजह आंसू बहाना छोड़ दो
मुस्कुराओ और हँसो जितना भी हो
गम को सीने से लगाना छोड़ दो
आज मौसम घूमने का है जरा
बैठ कर कोने में गाना छोड़ दो
हाल खुद का भी कभी तो पूछ लो
दुनिया भर के गम उठाना छोड़ दो
थक के पत्थर पे भी आ जाती है नींद
बिन थके बिस्तर पे जाना छोड़ दो
अपने तो कभी रूठने देंगे नहीं
बाकी सबसे रूठ जाना छोड़ दो
जो भी है जितना भी है लेकर बढो
और गिले शिकवे सुनाना छोड़ दो
दिल तो छोटा सा है बातें हैः बड़ी
दिल को कूड़ाघर बनाना छोड़ दो
दोस्तों की भूल पर मत ध्यान दो
दुश्मनों पर रहम खाना छोड़ दो
बांसुरी की तान पर झूमो कभी
नृत्य में करतब दिखाना छोड़ दो
नूर बन कर आँख में हर पल रहो
रोज़ आना और जाना छोड़ दो
बड़ी मुश्किल से सँभला हूँ बिखर जाने के बाद
मैं आज भी रोने लगता हूँ बहुत हँसने के बाद
ये हँसते लोग ये महफ़िल ये लापरवाह शामें
बहुत ख़ामोश हो जाते हैं घर जाने के बाद
मैं सब लोगों की तरह भूल कर भी जी तो लेता पर
हरेक दर्द मुझमे बस गया रह रह के सह लेने के बाद
बहुत मसरूफ़ लोगों के लिए लिखता नहीं हूँ मैं
ग़ज़ल मेरी निखरती है ज़रा सा दिल से छू जाने के बाद
कंचन
अमावस की रात तेरी देह की स्याही मिटा दूँ
ठहर तो कुछ दीप तेरी राह में जगमग जला दूँ
दीपकों की लौ से निकले इतने ख़ुशियों के उजाले
उत्सवों के गीत कुछ तेरे अंधेरे को सुना दूँ
श्याम रंग गम्भीर रजनी कार्तिक के मास की
ज्योति पुंजों से सज़ा कर तुझको दीवाली बना दूँ
आज तू माँ लक्ष्मी को सबके घर ले जाएगी
पैर में चाँदी की पायल पंख सोने के लगा दूँ
साँवले मांसल बदन पर दीप जड़ित लँहगा चोली
तारकोंसे टिमटिमाती गगन की चूनर उढा दूँ
हो सुवासित कोना कोना रहे न कण भर अँधेरा
सबके लब पर प्यार और सम्मान की मुस्कान ला दूँ
Happy Deepavali
कंचन
ज़िंदगी से जाने कितने वायदे किए
वायदे ही वायदे बस वायदे किए
दिल है कि बस छोटा सा बच्चा बना रहा
मचलता रहा तो कभी बहलता रहा
खवाईशों की टोफ़ियों पे लपकता रहा
भारी बैग फ़र्ज़ का कंधों पे लाद के
हमने कयी टोफ़ीयों के वायदे किए
मौसमों के साथ दर्द बदलते रहे
हर बरस से नए वर्ष निकलते रहे
फूल कभी खिले कभी बिखरते रहे
एक बरस आएगा बहार का ज़रूर
एक आस पर अनेक वायदे किए
अंधेरों से डरे हुए रास्तों पे हम
दीप दीप आस का रखते थे हर क़दम
खोज में उस मकाँ कीं न हो जहाँ पे ग़म
चलते रहे हौसले थकान पे रखे
बस पहुँच गए पहुँच गए वायदे किए
नन्ही जिम्मेदारियाँ बढ़ने लगीं थीं जब
पंख तोल कर उड़ान भरने लगीं अब
आज वो आकाश में उड़तीं है बाअदब
और हम सूरज की ओर मुख किए खड़े
मुस्कुरा के देखने के वायदे किए
जाने कब सब ख़्वाहिशें अनजान बन गयीं
रूह सिर्फ़ चैन का मकान बन गयी
ज़िंदगी की मुश्किलें आसान बन गयीं
जाने कब हमने मुआफ़ी ख़ुद से माँग ली
की हमने ख़ुद से सारे झूठे वायदे किए
वायदे ही वायदे बस वायदे किए
कंचन
साजे दिल तोड़ के आवाज़ की बातें न करो
आसमां छीन के परवाज़ की बातें न करो
डूबती शाम को तारों का दिलासा देकर
चांद के छल भरे अंदाज की बातें न करो
महफ़िलें भी हैं तमाशे भी रौनकें भी बहुत
पर किसी से भी यहाँ राज की बातें न करो
सुन तो सकते हैं मगर कहने में ये ध्यान रहे
इस भरी दुनिया में हमराज़ की बातें न करो
जो मिली थी उसे अंजाम से मिलवाने के बाद
अब नयी जींद के आगाज की बातें न करो
तन्हा सन्नाटों में गीतों के समा जाने के बाद
तार टूटे हों तो हमसाज की बातें न करो
रास्ते जानता हूँ फिर भी खो गया हूँ मैं
मंज़िलें छोड़कर जंगल का हो गया हूँ मैं
ये आँखें रोना भूल गयी हैं शायद
या फिर पत्थर तो नहीं हो गया हूँ मैं
न घर में चैन न रास्तों पे सुकून
मुसाफ़िर बेसबब सा हो गया हूँ मैं
आँखों में चंद तारे हाथों में दो चिराग़
सुबह की धूप से फिर शाम हो गया हूँ मैं
खाली होने में बस कुछ देर बाक़ी
छलकता जाम हो गया हूँ मैं
अपनी नाकामियों पर हँस रहा हूँ
कहीं पागल तो नहीं हो गया हूँ मैं
मेरी फ़ितरत में दिखावा नहीं हैं
महफ़िलों में भी तनहा हो गया हूँ मैं
ज़रा सा दिल बड़ा करके जिया था
और दरिया से समंदर हो गया हूँ मैं
कंचन
बस्ती उजड़ गयी मगर मकान बाक़ी है
तूफ़ान का ये आख़िरी अहसान बाक़ी है
कुछ लोग यूँ मिले कि हो चला हमें अहसास
ज़माना ख़राब है मगर ईमान बाक़ी है
मजबूरी ,ज़रूरत , ज़िम्मेदारी के बोझ को
कंधों पे उठाए हुए इंसान बाक़ी है
गुफ़्तगू , लहजे ,सलीक़ा ,उंसियत , नेकी
चेहरों पे इन लकीरों की पहचान बाक़ी है
पढ़ कर नमाज़ ज़िंदगी की सो रहेंगे हम
ज़िंदा हैं जब तक आख़री आज़ान बाक़ी है
मर कर भी ये आँखे खुली दर पर टिकी होंगी
अब भी तेरे दीदार का अरमान बाक़ी है
ढलती उम्र में भी न इस पर झुर्रियाँ आयीं
शायद मेरे दिल में कोई जवान बाक़ी है
हँसने दो खेलने दो नन्हें बालकों को ख़ूब
बचपन में ही तो ख़ुशी का गुमान बाक़ी है
काटो न वन छीनो न घोंसले गुफा इनकी
शहरों में घुस आएँगे बेज़ुबान बाक़ी हैं
अभी से कैसे बैठ जाऊँ छोड़ कर सब काम
अभी तो उसका आख़िरी फ़रमान बाक़ी है
पंखो में जान डालो हौसलों में तपती धूप
नापने को कयी आसमान बाक़ी हैं
अभी कोई रहम खा कर मुझे बेमौत मत मारो
ख़्वाब बिखरे हैं दिल टूटा है मगर जान बाक़ी है
सोने से पहले बहुत कुछ करना बनाना है
नींदों में मेरे स्वप्न की उड़ान बाक़ी है
कंचन
कोई शिकवा न गिला रह गया ज़माने से
फ़र्क़ पड़ता नहीं कुछ रूठने मनाने से
हज़ारों इम्तिहान ले के तुमने देख लिए
बाज़ आ जाओ अब तो और आज़माने से
है जिनका काम ही औरों की बेज्जती करना
कौन रोकेगा उन्हें खिल्लियाँ उड़ाने से
हँसी ,आँसू,सकूँ,तन्हाई,सब्र,ख़ामोशी
मिला है कितना कुछ मुझको तेरे ख़ज़ाने से
दिल तो बेचारे ख़ामोशी से टूट जाते हैं
शोर होता है बहुत ख़्वाब टूट जाने से
मुझे रुलाने की उम्मीद लिए बैठे हैं
उनसे कह दो कुछ न होगा मुझे सताने से
वक़्त के साथ मिट जाते हैं ज़ख़्म दर्दों अलम
याद एक एक आ जाता है दिल दुखाने से
कंचन
कश्ती तो वही है तो क्या दरिया बदल गया
या फिर भँवर का ज़ोरों ज़बरिया बदल गया
कुछ नए लोग निशाने पे आने लगे हैं
सुन रहे हैं उनका ख़बरिया बदल गया
किरदार न बदला न तेवर तेजो तर्रारी
बदला है तो बस उनका साँवरिया बदल गया
धूप न बदली न झोंके हवा के बदले
आँगन झरोखे और अटरिया बदल गया
लोग भी वही मेरा किरदार भी वही
हालात क्या बदले कि नज़रिया बदल गया
कंचन
थमा कटोरा भीख का देखो हाथों में
जनता को ये बना रहे भिखमँगा हैं
कोई मुफ़्त में बाँट रहा है मिड्डे मील
कोई देकर लैप्टॉप ख़ुद कर्ण बना
कोई कन्या धन देकर हुआ राजाभोज
कोई बाँट कर फ़ोन बनाता निकम्मा है
आरक्षण से नौकरियाँ जब बँटती हैं
नलायको की फ़ौज देश में बढ़ती है
स्वाभिमान जनता का देखो नष्ट हुआ
मुफ़्तख़ोरी का चारों ओर ही डंका है
होनहारों को देश में कहीं ठौर नहीं
रोज़गार न मान न ही सम्मान कहीं
छोड़ देश को क़ाबिल बच्चे चले गये
रामराज नहीं ये रावण की लंका है
जागो भारतवासी अब आँखें खोलो
भीख नहीं रोजगार चाहिये यह बोलो
जो जिस क़ाबिल है वह वैसा काम करे
आरक्षण का नियम अति बेढंगा है
अपनी मेहनत अपने बल परहो विश्वास
ईमानदारी से मिले वह थोड़ा भी है ख़ास
बेमानी और भ्रष्टाचार का साथ न दो
जय भारतवासी जय अमर तिरंगा है
जनता का धन बाँट बाँट कर इतराते
रोज़गार देने से सारे कतराते
मूर्ख बना कर हमको देश को लूट रहे
ख़ुदगर्ज़ी के रंग में नेता रंगा है
अपने श्याम से हमको भी एक बार मिला दो राधा जी
दर्शन को हम तड़प रहे एक बार दिखा दो राधा जी
जब भी मोहन रास रचैया मुरली मधुर बजाता है
तीनों लोकों में अमृत रस की धारा छलकाता है
एक बार उस वंशी धर का राग सुना दो राधा जी
बचपन कैसा होता है मनमोहन ने लीलाएँ कीं
बालक बन कर जब कान्हा ने बाल सुलभ क्रीड़ाएँ कीं
आदर्शों के उस सागर में हमें डुबा दो राधा जी
राजा बनकर राजधर्म सिखलाया मुकुट बिहारी ने
प्रकृति प्रेम और पशुप्रेम का मोल दिया बनबारी ने
उस गोवर्धन धारी की पग धूलि दिला दो राधा जी
बिन फेरे बिन गठबंधन के मोहन राधेश्याम हुआ
मोहन के हर नाम से पहले राधा तेरा नाम हुआ
प्रेम अलौकिक सच्चा पावन हमें सिखा दो राधा जी
कर्म योग और ज्ञान योग दो रस्ते प्रभु तक जाते हैं
ध्यान योग और भक्ति योग से मुक्ति द्वार खुल जाते हैं
गीता दर्शन का प्रकाश मन में फैला दो राधा जी
धर्म का पालन बड़ा कठिन विरले इस पर चल पाते हैं
न्याय के पथ पर अर्जुन अभिमन्यु जैसे बढ़ पाते हैं
कान्हा जैसा महा सारथी हमें बता दो राधा जी
मुरली की जिस धुन पर सारी सुध बुध खोकर आती हैं
ब्रज बालाएँ पायल छनकाती जमुना तट जाती हैं
उस राग रंग और भक्ति ध्यान में हमें झुमा दो राधा जी
कंचन