आँक लेने वाले
मेरे नयन रहे हैं तेरे हर गम ,भाप लेने वाले।
तेरे इरादे रहे हैं मेरी हैसियत ,माप लेने वाले।
तुझसे शिकायत करके कुछ हासिल न कर सके,
आज भी बेचैन हैं मुझे कम आंक लेने वाले।
मुझे मुझसे अलग करने की साज़िश में रहे।
बारूद खुद में लपेटे रिश्तों के माचिस में रहे।
हर रिश्ते को अलग निगाह से ताक लेने वाले।
आज भी बेचैन हैं मुझे कम आंक लेने वाले।
बर्बाद होना भी क्या कुछ दिखा जाता है।
बर्बादी का हर पल सिखा जाता है।
बड़े आबरू वाले होते हैं,परदे से झाँक लेने वाले।
आज भी बेचैन हैं मुझे कम आंक लेने वाले।
शायद अब निकलूँ नए मुकाम की तरफ।
दिन के उजाले में हसीन शाम की तरफ।
इरादे हों शायद कथित अपनो से तलाक लेने वाले।
आज भी बेचैन हैं मुझे कम आंक लेने वाले।
– सिद्धार्थ पाण्डेय