अहिंसा
क्या कहा आज से हम गाँधी बन जायें?
सद्भावना और सौम्यता की आँधी बन जायें?
अरे! गीध के खाने भर जिसका माँस नहीं था
आज जिया कल का कोई आस नहीं था
लाखों चलते थे महज आवाज पर जिसकी
बातों का असर आज भी है समाज पर जिसकी
जो बोलता था शब्द वही संहिता बनी
छोड़ा असर जहां वहीं ठंढ़ी चिता बनी
शत्रु जले बिन आग के सब मात खा गये
मेरी नजर में तो वह दाल भात खा गये
हमारे आगे उसकी कोई बात नहीं है
हम कैसे माने जिसकी कोई जात नहीं है
हम हिन्दू है मुस्लिम हैं और सिक्ख ईसाई
हम सबने अपनी अलग अलग कौम बनायी
थे खाली पेट देश बेचा क्या बुरा किया
धन धान्य सब भरे हैं तुमने क्या भला किया
अरे! अग्रसर नवीनता की ओर हम हुए
धुसरित पड़े इतिहास को कभी नहीं छुए
मुझको कहां पता किसे फांसी सजा मिली
कौन सक्शियत कहां किसी बलिवेदी पर गिरी
समझाओ हमको हमने क्या बुरा किया
गांधी जी के नारे से सिर्फ ‘अ’ हटा दिया