अहसास
रिश्तों को नयापन देने के लिए,
अपनेपन का अहसास जरूरी है,
बेशक आप व्यस्त हैं संसार की आपाधापी में,
सांसारिक कढ़ाहे में तप रहे हैं,
जल रहे हैं, उबल रहे हैं,
फिर भी अपनेपन का अहसास जरूरी है।
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ये जरूरी नहीं कि आप लफ्जों से जज़्बात व्यक्त करो,
आपका व्यवहार, आपके अवलोकन का नज़रिया,
जो बयां कर देता है आपकी जिम्मेदारी का अहसास।
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यह जरूरी नहीं आप अपने अहसास के अनुभव को साझा करो,
बिना साझा किए भी आपकी भावना व्यक्त हो जाती है,
आखिर कमजोर होती है उन रिश्तों की डोरी,
जो बुने होते हैं लफ्ज़ों के धागों से,
उलझ जाते हैं वो रिश्ते,
जिन्हें अक्सर कम समय दिया जाता है।
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विश्वास अविश्वास में बदल जाता है,
जब कोई अपना विश्वासघात करता है,
उसकी जुबां पर धोखा दिखता है,
जब वह हृदय पर कुठाराघात करता है,
फिर पसंद आने लगते हैं अंधेरे,
रोशनी से हो जाती है नफ़रत सदा के लिए।
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आसपास बढ़ जाती हैं चिमागोइयां अक्सर,
धोखेबाज़ लगने लगता है हर कोई,
सुरागरस्सी होने लगती है हर जगह,
डिप्रेशन का शिकार होने लगता है आमजन।
घोषणा – उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित और स्वरचित है। यह रचना पहले फेसबुक पेज या व्हाट्स एप ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।
डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।