“अहसास”
“अहसास”
न बारिश की बून्दों से धुलता
न समय की रचती धूल
न कोई राज्यादेश का मोहताज
न लागू होता कोई रूल
ये मस्तिष्क पटल पर अंकित रहता है
तारीफ़ न निन्दा सहता है
अहसास ही वो संजीवनी है
जो हर हाल में जिन्दा रहता है।
– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति