अहं प्रत्येक क्षण स्वयं की पुष्टि चाहता है, नाम, रूप, स्थान
अहं प्रत्येक क्षण स्वयं की पुष्टि चाहता है, नाम, रूप, स्थान आदि के रूप में। इंसान जिस क्षण सक्रिय दिमाग एवं विचारों के साथ “मैं” को भूल जाता, इन तमाम पहचानों से दूर हो जाता है, वही क्षण आत्मज्ञान है, अतुलनीय आंनद है।