अस्तित्व अंधेरों का, जो दिल को इतना भाया है।
अस्तित्व अंधेरों का, जो दिल को इतना भाया है,
रौशनी के घने धोखों से, इसी ने तो बचाया है।
सूरज के उस ताप ने, जिस अस्तित्व को जलाया है,
चाँद की शीतल ठंडक में, उसके ज़हन ने सुकून पाया है।
शब्दों की तीखी चुभन से, जब भी दिल भर आया है,
सितारों ने थके हिम्मत को, चुपके से आ सहलाया है।
खोया था उजालों में जो, अंधेरों में खुद को पाया है,
इस सार्थक पल ने, अपने-परायों का नकाब भी हटाया है।
जो दिख ना सका खुली आँखों से, बंद नज़रों ने दिखाया है,
ना पहचाना था कभी खुद को, ये तथ्य अब समझ आया है।
कारवाओं की तलाश नहीं, जो अपने क़दमों को पाया है,
इंतज़ार में मंजिलें हैं और अब रास्तों ने बुलाया है।