असहाय
फुटपाथ बटोही क्या जाने,
मंगल की बेला होती क्या।
सर्दी की ठिठुरन आह भरी,
ममता की मूरत रोती क्या।।
अम्बर वितान के तले सहज,
हर दिन होता है इक जैसा।
सूरज की गर्मी को सहकर,
तप जाता है कुन्दन जैसा।।
मँहगाई में निर्धनता की,
त्यौहारों का मौसम कैसा।
बस दवा कर्ज है भूख सदा,
संगीतों का सरगम कैसा।।
सौगात सुगम मिल जाती है,
बचपन मुख पर मुस्कान देख।
झोपड़पट्टी के जीवन की,
असहाय गरीबी अमिट रेख।।
डा.मीना कौशल
प्रियदर्शिनी