*असर*
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
* असर *
मोहिनी ऐसी बिखेरी आपने ।
सुध बुध मेरी बिसारी आपने ।
दूर तक अब नज़र धुँधलाई है ।
चाँद छुपा बदली में वो घड़ी आई है ।
दर्द मेरा थम गया धड़कन रुकी ।
नयन उलझे आपसे जिस वक्त से ।
काम का न काज का मैं अब रहा ।
आठों पहर अब याद में खोया रहा ।
झलक फिर भी नहीं दिखलाई है ।
या खुदा ये तो ज्यादती फरमाई है ।
कह के जाते और जाना भी चाहिए ।
कि अब किसी और से आशनाई है ।
खुदा ने मौहब्बत पर जब अपनी सलाह दी ।
इंतजार की नुकती तभी उस में घुसा दी ।
आशिक हो या फिर कोई माशूक हो ।
सबके तड़पने की यही एक वज़ह थी ।
झेल पाया न कोई आज तक इस दंश को ।
आँख में आँसू दिल में पीड़ा नज़र घड़ी पर ।
दिखे इस हालत में अरुण कोई इन्सान ।
सताया है मौहब्बत ने उसको भी ए साहेबान ।