असंभव है प्रेम शब्द की व्याख्या
असंभव है प्रेम शब्द की व्याख्या
प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया
प्रेम शब्द का सार जगत में
कोई नहीं कह पाया
संपूर्ण जगत कोई और तुम्हारे
प्रेम और अनुराग का भागी
उतना ही तुम स्वयं भी हो
प्रीत परस्पर जग में जागी
प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति
निरंतर पुष्पित पल्लवित फलित होती है
प्रत्येक रिश्ते में ऊर्जा प्रेम भाव की होती है
प्रेम वास्तविकता है जग की
सृष्टि का अंतिम सत्य है
समाहित है प्रकृति की भावनाएं
धरती पर जीवन नित्य है
प्रेम एक नदी है ऐसीं
जिसका अंतिम छोर नहीं
प्रेम है ईश्वर की डोर अनादि
रिश्ता कोई और नहीं
जिसने समझा मर्म प्रेम का
समझना कुछ और नहीं
प्रेम का भाव है अति सुकोमल
प्रेम बाहर दिखावा नहीं
विशिष्ट भाव है अंतर्मन का
सत्य ईमान समझ विश्वास आधार यही
पारदर्शिता और समर्पण
जीवन का सार्थक अंग यही
सुरेश कुमार चतुर्वेदी