गुजारी जाती रही
शक़ और सुब्हा जो हुआ तो यारी जाती रही
ज़रा ग़ुरूर जो आया सब ख़ुद्दारी जाती रही
मौत आते ही ‘अर्श’ बेवजूद हो गयी पल भर में
जो बरसों तक ज़िंदगी कह के पुकारी जाती रही
ग़म ए फुरकत के आलम में वो तेरी याद ही थी
जिसके सहारे यह ज़िन्दगी गुजारी जाती रही