अवकाश
अवकाश
(अतुकान्त)
एक दिन अवकाश चाहती हूँ,
घर के कामों से आराम चाहती हूँ।
सब के सुझाव पर रखा था काम वाली को,
पर उसको तो समझाना…
खुद करने से भी ज्यादा मुश्किल था ।
सुनाने वाले तो सब सुना जाते हैं,
क्यों करती हो इतना काम !
अवकाश शब्द कहकर क्यों जताती हो एहसान!
सुबह से तरसी थी कुछ पलों को,
मिल जाता जो अवकाश….
मन में घूमती पंक्तियों को लिख
पा जाती सुकून का एहसास ।
सुबह-सुबह मिले हैं कुछ पल
चाय के कप के साथ …
इसे ही अवकाश समझ
मैंने लिखने का कर दिया प्रयास।
गृहस्थी की चक्की तो यूंँ ही चलती रहेगी मेरे भाई,
कुछ पल अवकाश के खुद ही ढूंँढने पड़ेंगे मेरे भाई।
जब भी मिले यह अवकाश के पल,
अभिव्यक्ति के पुष्प खिला देना,
गुस्से में बैठकर अब तक अवकाश ना मिला
यही सोच सोचकर
उन पलों को गवाँ न देना।
नीरजा शर्मा