अल्लाह क्या नसीब बनाया ग़रीब का।
ग़ज़ल
अल्लाह क्या नसीब बनाया ग़रीब का
फुटपाथ पे बिछा है बिछौना ग़रीब का
सब उससे दूर रहते हैं सबको है उससे आर
सुनने को कौन आता है दुखङा ग़रीब का
कारों में घूमते मिले बच्चे वज़ीरों के
सरहद पे जान देता है बेटा ग़रीब का
करता है बस ज़बाँ से ग़रीबों के हक़ की बात
वो शख़्स छीनता है निवाला ग़रीब का
उससे चुराते रहते हो अपनी निगाह क्यों
देखो कभी तो ग़ौर से चेहरा ग़रीब का
तुझसे ये वक़्त लेगा हर इक बूँद का हिसाब
कितना लहू ज़मीं पे बहाया ग़रीब का
ऐवानों में जो बैठे हुए लोग हैं “क़मर”
उनको नहीं ख़याल ज़रा सा ग़रीब का
जावेद क़मर फ़ीरोज़ाबादी