अलग अलग गजलो के कुछ शेर बहुत समय के बाद
खुशियों को संभालने का हुनर था नही हमे
अच्छा हुआ की गम मेरे हिस्से में आ गये..
इतना भी नाराज़ तो नही था में खुद से
जितना खुद को खुद मनाने में लगा हूँ में..
कुछ दिनों से मुकम्मल नही कर पा रहा हूँ मै इन्हें
यें कुछ गज़लें अधूरी रेह गयी है तेरे छोड़ के जाने से..
मेरी गजल भी तब तलक खुद को है अधूरा मानती
जब तलक कि उसमें तेरा कोई जिक्र नही आता..
नींद भी अब तब तलक सोने नही देती है मुझको
जब तलक तेरे ख्वाब देखने का उससे वादा नही करता..