अरे धर्म पर हंसने वालों
अरे धर्म पर हंसने वालों,
जरा गौर से सोचो तुम,
धर्म की जब- जब हानि हुई है,
धरा टिकी है या फिर तुम?
किसी धर्म की हंसी उड़ना ,
क्या लगता है ठीक तुम्हे?
राघव हो या फिर माधव,
जग में ईश एक ही है।
कभी किसी के धर्म को,
हम तो कभी न हंसते है,
लेकिन तुम बेशर्म बहुत हो,
तुमको समझ न आता है।
क्या साधु संतों की वाणी,
तुमको लगती झूठी है?
भागवत,पुराण,मानस ,गीता
तुमको क्यों लगती फीकी हैं?
अरे अभी भी सोच लो जरा ,
समय तुम्हारे पास है,
मृत्यु समय धर्मराज ही होगें,
तब क्या उत्तर दोगे तुम।
हरि – हर निंदा जो सुनता है,
पाप होता गोघात सा,
फिर भी तेरे समझ न आए,
धिक्कार है तेरे जन्म का।
भारतवर्ष की बेटी हूं,
करारा जवाब मैं देती हूं,
जो भी मेरे मार्ग में आए,
जड़ से उखाड़ फेक देती हूं।
अनामिका तिवारी “अन्नपूर्णा “✍️✍️