अरमान
भटकते हैं
जो राह से
नहीं पहुंचते
वो मंज़िल तलक
रह जाती है
दिल में
डोली
अरमानों की
सपने संजोए
बैठी है बिटिया
मिलेगा योग्य
संस्कारी राजकुमार
होता सामना उसका
दहेज लोलुप
अत्याचारियों से
बिखर जाती
डोली अरमानों की
पालते माता पिता
लाड़ दुलार से
बच्चों को
छोड देते
बुढ़ापे में
जब वो अकेला
टूट जाती उनकी
डोली अरमानों की
होते वीर शहीद
देश पर
करते हैं गर्व हम
जब गद्दारी करते
कुछ देशद्रोही
जाती है टूट डोली
अरमानों की
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव