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19 Feb 2024 · 1 min read

अम्बर में अनगिन तारे हैं।

अम्बर में अनगिन तारे हैं।

रोज रात में खिल जाते हैं
आपस में हिलमिल जाते हैं,
रखते उर में वैर नहीं हैं
मिलते जैसे गैर नहीं हैं।

भूतल से लगते न्यारे हैं
अम्बर में अनगिन तारे हैं।

टिमटिम करके रैन सजाते
लगते सुर में हैं सब गाते,
रात-रात भर जगने वाले
शुभ्र-ज्योत्सना मुख पर डाले।

नूतन ही लगते सारे हैं
अम्बर में अनगिन तारे हैं।

कितने तारे टूट पड़े हैं
नील गगन से छूट पड़े हैं,
नहीं भाग्य का रोना रोते
दामन अपना नहीं भिगोते।

विपदा से ये कब हारे हैं
अम्बर में अनगिन तारे हैं।

आता जब उज्ज्वल प्रभात है
तारों की रहती न पाँत है,
थके-थके से घर को जाते
नई चेतना फिर भर लाते।

रात्रि पुनः खिलते प्यारे हैं
अम्बर में अनगिन तारे हैं।

अनिल मिश्र प्रहरी।

Language: Hindi
209 Views
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