अमृत धारा
नील गगन से आने वाली वर्षा
संग लाना तुम अमृत धारा
धुल जाये सब पीड़ा जग की
सुन लो बात यह अन्तर्मन की
आज जग में छाया सघन अन्धकार
त्राहि – त्राहि कर रहा मानव जीवन लाचार
प्रकृति कुपित है मानवता कमजोर
चल न सका कही कोई जोर
अब मानव हिय की वेदना सुनो
जीवन में फिर से जगे नव चेतना
उत्साह उमंग और उल्लास की
जीवन में खुशियों की सौगात की
नील गगन से आने वाली वर्षा
संग लाना तुम अमृत धारा
नेहा
खैरथल (अलवर) राजस्थान