अमृत की बरसात
ए खुदा कर दे तू इस बार ,ऐसे अमृत की बरसात
की धूल जाए यह विश यह जहर ,जो फैल रहा है इस संसार में
किस तरह तबाही मच रही, किस तरह मच रहा हाहाकार
मैं किस तरह तुझे बुलाऊं, मैं किस तरह तुझे पुकारू
यह देख दिल है रो रहा , जब है कोई अपनों को खो रहा
सूनी हो गई यह गलियां, सुना पड़ा यह बाजार है
जहां बजती थी चारों और मंदिरों में घंटियां
वह बाग बगीचे सूने पड़े ,आज सूने खेत खलियान हैं
जहां रौनक होती थी कभी, आज सूना पड़ा यह जग संसार है
ए खुदा तू तो सब है जानता, तू तो यह सब है देख रहा
फिर किस बात की है देरी, फिर क्यों नहीं है तू अमृत बरसा रहा
हर गलतियों की क्षमा है मांगते, अब तो अपनी कृपा को है बरसा
ए मेरे खुदा ऐ मेरे मालिक ए मेरे प्रभु
इस बार तो बारिश ऐसी करना, फिर एक बार खुशियों से अच्छाई से बन जाए फिर यह खुशी संसार
ऐसी फिर करना अमृत बरसात, कि जो भीगे इस बरसात में मिट जाए उसके मन से हर किसी के वह पाप है
आ जाओ प्रभु अब तो किसी रूप में, कर जाओ फिर वह अमृत बरसात
ना आए कभी यह दिन लौट के ,खुशियों से भर जाए खुशबू से महक जाए यह जग संसार ।