अमृतम् जलम्
अमृतम् जलम्!
जल से भरी गगरिया हो,जन जीवन खुशहाल रहे!
शीतल जल की स्वच्छ छलकती, नदिया यहां बहे!!
यही भावना लेकर निकला मानवता का कारवां।
जल जीवन का सार है,जल जीवन का पासवां।
यही भावना लेकर निकला, जलयोद्धा का कारवां।।
पुरखों से जो मिली विरासत, उसे बचाना होगा।
जो गुलशन बिसराया हमने, उसे सजाना होगा।।
भौतिकता के लोभ में,भूल गए हम धन अपना।
बिन पानी बिन शुद्ध हवा के, कहां मिले सुख का झरना!!
एक बूंद अमृत पानी की,सही समय पर परख करे।
नहीं रहा जल जीवन में तो नयनों से बन दर्द झरे।।
हरी भरी हरियाली धरती,बिन पानी के सपना है।
बहता जल हो भरे खेत हों, तो सारा सुख अपना है।।
सीमित दोहन-हो संरक्षण , तभी भरें जल के भंडार।
हरा-भरा आंचल धरती का, सुखी रहेगा यह संसार।।
अजब कहानी इस जीवन की, पानी मिले तो पूरी है।
प्यासी रूहें फिरें भटकती, जिनकी चाह अधूरी है।।
जितना पानी रहे जरूरी, उतना मीठा जल चखिए।
परि-आवरण भाग हमारा,इसे निरंतर ही रखिए।।
संतुलन पर टिकी जिंदगी, बिगड़ गया तो खाली हाथ।
क्यों हम जल को व्यर्थ बहाएं, अच्छी नहीं है भैया बात।।
एक-एक ग्यारह होते हैं, बूंद-बूंद से घड़ा भरे।
सब मिलकर जुट जाएं तो, लहलहाएं खेत हरे।।
छोटा सा अभियान हमारा, परिवर्तन की बने मिशाल।
जल बचाएं-वृक्ष लगाएं, ऊर्जा के भंडार विशाल।।
जिस धरती पर जन्म लिया है,उसका कर्ज चुकाएं हम।
किस्मत-रेखा खुद ही खींचें , सदा-सदा मुस्काएं हम।।
अपना सुख है अपने हाथ , चलो आजमाकर देखें।
शीतल जल-शुद्ध हवा मिले,कुछ वृक्ष लगाकर देखें।।
खुद से खुद ही वादा करिए, अपनी धरती-अपना देश।
यही भावना रखे बदलकर , अपना सुंदर सा परिवेश।।
जड़ें हमारी जमी धरा पर, खुशियों की छत नील गगन।
बसे बीच में दुनिया अपनी, खुशहाल यहां मन “मौज” मगन।।
विमला महरिया “मौज”