अमीरों की गलियों में
क्योंकि रहा हूँ मैं उनके मकानों में,
रोशनी से नहाते हुए झरोखों में,
बैठा हूँ हमेशा उनकी महफ़िलों में,
और उनके साथ बैठकर,
कभी उड़ाई है दावत भी ll
हाँ, हमेशा मेरी आदत रही है,
दिखाना खुद को इज्जतदार,
खाते पीते घर का चिराग,
और मुझको पसंद नहीं रहा कभी,
मलिन और टूटे – फूटे घरों में रहना,
अनपढ़ और मुफलिसों से दोस्ती करना ll
इसलिए रहा हूँ मैं हमेशा ही,
शूट- बूट पहनकर,
और देखा है उनको नजदीक से,
उनके घर में रहते हुए भी,
उनके दरवाज़े पर लगा हुआ ताला,
और उनकी स्त्रियों को ताले में बंद ll
अय्याशी और दो नंबर के उनके काम,
इंसानों से ज्यादा कुत्तों को महत्व देकर,
उनके द्वारा कुत्तों को दूध पिलाते हुए,
कुत्तों को अपने सीने से लगाते हुए,
उनके द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए,
ताकि गुजर नहीं सके कोई अजनबी,
उन अमीरों की गलियों से कभी भी ll
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला – बारां (राजस्थान )