अभिलाषा/कविता/निमाई प्रधान’क्षितिज’
“अभिलाषा”
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भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
मानव-मानव में रक्ताणु एक-से
हैं जीवंतता के परमाणु एक-से
‘होमो-सेपिएंस’ ही जाति ओ’वंश
एक ही अंतर्मन की बोली-भाषा !
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
पुरस्कृत जीवन-मूल्यों से संसृति
‘मानव’ प्रकृति की अनमोल कृति
हो ध्येयसूत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम्’
समरसता जीवन की हो परिभाषा!
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
न दारिद्र्य-धनी की खाई-घाटी हो
न ही जाति-धर्म की परिपाटी हो
पौरवात्य संस्कृतियाँ पुनर्सर्जित हों
दया-ममत्व स्पन्दित हों बारहमासा !
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
तोड़ो हर-एक बंधन,नया क्षितिज मिलेगा
उस क्षितिज में परिवर्तन का बीज मिलेगा
रूढ़ियाँ मृत-देह से लिपटने की माया है
हो विदेह..जीवन का तुम खेलो पासा !
भेदभाव समूल मिट जाए जगत् से
हो ऐसी हम सबकी अभिलाषा !!
-@निमाई प्रधान’क्षितिज’
रायगढ़, छत्तीसगढ़
मो. नं. 7804048925