अब वतन में भाईचारा यूं बढ़ाना चाहिए
बह्र-रमल मुसम्मन महज़ूफ
वज़न-2122 2122 2122 212
ग़ज़ल
इन हवाओं का हमें रुख यूं बदलना चाहिए।
हर सफ़ीना अब निकल तूफां से आना चाहिए।।
बिछ गया है जाल फिर से ये परिंदों अब तुम्हें।
फिर किसी सय्याद का दाना न चुगना चाहिए।।
जो उड़ाते है कबूतर इस फ़ज़ा में अम्न के।
भाई-भाईको न फिर उनको लड़ाना चाहिए।।
फिर सियासत ने बिछाई है बिसातें खेल की।
लोगो तुमको अब कोई मोहरा न बनना चाहिए।।
बढ़ रही दिल में हमारे नफरतों की गर्मियां।
प्यार के बंजर दिलों में बीज बोना चाहिए।।
मै दिवाली को मनाऊं तू मना ले ईद को।
अब वतन में भाईचारा यूं बढ़ाना चाहिए।।
हर पड़ौसी का मकां रोशन रहे अब ये “अनीश”।
एक दीपक प्यार का ऐसा जलाना चाहिए।।
@nish shah