अब भी कहता हूँ
तुम लौटा नहीं सकती
अगर डूबती हुई शाम
वो सुहानी सुबह
वो नींद, वो ख्वाब
जो आया था चुपके से
अहसासों के आँगन में
तो लौटाने को
तुम क्यों हो बेताब
वो किताब, वो कलम
वो खत, वो ख्याल
इन सारी चीजों को
तुम जरा खंगाल,
जिसे कहा था मैंने
अब भी कहता हूँ
कुछ इन्हें भी सम्हाल।
काव्य-संग्रह : ‘पनघट’ में संकलित
रचना की चन्द पंक्तियाँ।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक।