अब बादल मौत लेकर आता है
अब बादल मौत लेकर आता है,
जब चाहिए भारतीय किसानों को-
तब यूरो पाने यूरोप चले जाता है।
मानसून पूर्व बारिश की बारिशी
इतनी तंज कसता व रंज लाता है,
कि खमार के दाने, माल-मवेशी
और मेरे-तेरे घर बह जाता है।
एक तो मानसून में वर्षा होती नहीं
होती तब फसल बोयी चली जाती है,
पर खूब बारिश से फसल बह जाती है।
तब बारिश पर भरोसे नहीं रहे अब,
पेड़-पौधे की कटाई होएंगी जब-जब।
खूब पलंग पर सोओ, विलासी जीओ
प्रकृति से छेड़छाड़ माने नो ऑक्सीजन,
हो क्यों नहीं कोई रीज़न या ऑफसीजन।
अब बादलों के आँसू भी सूख गए हैं,
और बरसानेवाली बारिश रूठ गए हैं।
पर अबकी चक्रवात से घर खूब चुई,
गुस्से से माँ ने पकौड़ी न फुल्के बनाई।
आत्महत्या करते किसान सूखे कारण,
मौत, क्रंदन, चूल्हे-चक्के बंद अकारण।
सच में बादल मौत लेकर आता है,
जब चाहिए भारतीय किसानों को-
तब यूरो पाने यूरोप चले जाता है।