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21 Nov 2017 · 1 min read

अब तो चले आओ…

कभी तो बाँहों के गिरफ्त में चले आओ,
कंपकपाती हुईं पैरों को बढ़ाते चले आओ,
शर्द हवाओं के बीच, ज़ुल्फ़ लहराते चले आओ,
गर्मी होठों पर दबाए, मुस्कुराते चले आओ,

अलाव पे चढे़ चाय की चुस्कियाँ लेने चले आओ,
गुफ्तगू कि चाह है, लबों को हिलाते चले आओ,
अपनी इक छुअन से सिहरन भगाने चले आओ,
ठिठुरन भरी रातों में आग लगाने चले आओ,

अगर इश्क नहीं है, तो न ही सही,
कम्बख्त ठंड का पारा तो बढ़ाने चले आओ..!!

Language: Hindi
227 Views
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