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30 Mar 2021 · 1 min read

अब तलक छला नहीं

खुद लिख के जी ली जिंदगी
अब जिंदगी से गिला नहीं..

पढ़ भी इस क़दर लिया कि
तू घुट्टी नई पिला नहीं..

कविता में प्रेम कर लिया
चाहे रूबरू मिला नहीं..

जो उधड़ गई मेरी जिंदगी
मैंने आज तक सिला नहीं..

यूं बेसबब मत कुरेद इसे,
ये घाव अब हरा नहीं..

खुद के भरोसे है “भारत”
तब से अब तलक छला नहीं..

भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर

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