अब चरागो को मत हवा देना
——ग़ज़ल—–
दर्दे दिल मेरा मत बढ़ा देना
और जो चाहे तुम सजा देना
आशनाई है तीरगी से मेरी
जाते जाते शम’अ बुझा देना
फिर सहारा तुम्हे भी मिल जाए
बे सहारों को आसरा देना
मुद्द्तों बाद घर हुआ रौशन
अब चरागों को मत हवा देना
कुछ तसल्ली तो क़ल्ब को होगी
बस जरा सा तू मुस्कुरा देना
और “प्रीतम” न चाहिए तुमसे
बा वफ़ा हूँ तो बस वफ़ा देना
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)