अब गुमाँ तुझको कैसे आया है
अब गुमाँ तुझको कैसे आया हैं
क्यूँ मुहब्बत से दिल सजाया हैं
नफ़रती बस्तियों में उसने’ कहीं
आशियाँ फिर से’ इक बसाया है
क्यों नक़ाबों का आसरा लेना
रुख़ पे परदा ये क्यूँ गिराया है
क़ैदे’ हसरत की’ जेल में आकर
क्यूँ हरिक दर पे सर झुकाया है
देखना सूखे’ इन दरख्तों को
अब फ़िज़ा ने इन्हें जलाया है
ख़ुश्क आँखों से उम्र भर रोए
नीर आँखों का जब सुखाया है
आशिक़ी कर तू’ ऐसी जज़्बाती
रब से दिल हमने अब लगाया है
जज़्बाती