अब कितना कुछ और सहा जाए-
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अब कितना कुछ और सहा जाए,
होठो कब तक हाथ रखा जाए !
तुम ही बतला दो मेरे आका
मुँह खोले या मौन रहा जाए !
साहिब पूछ रहे है मुर्गे से,
फंदा ढीला, और कसा जाए !
साँसे अटकी चाहे गरदन में,
फिर भी अच्छा दौर कहा जाए !
आज मिटा दो कल की पहचानें,
इतिहास नया दौर रचा जाए !
फरमान हुआ सांपो से बिल से,
दुर्बल को पुरजोर डसा जाए !
रोजी रोटी की बातें छोडो,
धरम अभी बलवान रखा जाए !
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डी के निवातिया