अबूझमाड़
जिसको बूझना सम्भव ना हो
वो घाटियाँ वो पहाड़,
सड़क बिजली कुछ भी नहीं
न शहरी सभ्यता का प्रसार।
अत्यन्त जटिल और दुर्गम इलाका
अलग जिसका संसार,
घूम कर देख चुके लोग कइयों
पाते ना कोई पार।
भारत के कइयों जिलों से बड़ा
है तो इसके रकबे,
मगर ताज्जुब की बात यही कि
गॉंव मिलते ना कस्बे।
माड़िया जनजाति के लोगों का
अपना अजब रिवाज,
बाघ वनभैंसा गौर सांभर चौसिंगा
ढेरों मिलते आज।
आज तक जिसे मापा न जा सका
वो अबूझमाड़ इलाका,
सिर्फ वनोपज से ही विनिमय होते
बजते ढोल ढमाका।
वो संरक्षित क्षेत्र है अबूझमाड़
कभी न कटाई होई,
प्रशासन के बगैर इजाजत वहाँ
जा सकते नहीं कोई।
स्थानान्तरित खेती ही करते सब
अबूझमाड़ के वनवासी,
जैव विविधता भरी पड़ी वहाँ पर
जीवटता दिखती खासी।
(मेरी सप्तम काव्य-कृति : ‘सतरंगी बस्तर’ से,,,)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
अमेरिकन एक्सीलेंट राइटर अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।