अपयश
डर नहीं लगता, हैरानी भी नहीं होती।
गुस्से में अब उसको देखकर, क्यूँ पलकें भिगो दी।
दिल करता है समा लूँ, ग़म उसका ले लूँ
उसकी ग़र हो इजाजत तो मैं भी साथ बैठकर रो लूँ।।
ग़म-ए-शाम की तन्हाई है, आज फ़िर उदासी छायी है।
तुम खुश हो! अच्छी बात है, इसमें नहीं कोई बेवफाई है।।
जीना-ए-आरज़ू है क्या, उसे भूलना बात और है।
छलावा जो किये जाते हैं, जिनके दिल में चोर है।।
दुनिया थोड़ी मुश्किल है, ‘काफ़िर’ हो जाऊँ क्या?
अपयश मुझको ही मिलना है, सूर्य बनके आऊँ क्या!