अपने मन के भाव में।
अपने मन के भाव में,
खुद की करती खोज।
शब्दों के मोती सजा
मैं लिखती हर रोज़।।
उड़ूँ कल्पना संग मैं,
पकड़ कलम की डोर।
अद्भुत अविरल ये छटा,
करती भाव विभोर।।
मन्त्र मुग्ध मन हो गया,
मुखड़े पर है ओज।
अपने मन के भाव में,
खुद की करती खोज।
सागर-सी लहरें उठीं,
मन में मचे हिलोर।
भँवर जाल में मैं फँसी,
शब्द मचाए शोर।।
टूट पड़े है भाव सब,
जैसे करते भोज।
अपने मन के भाव में,
खुद की करती खोज।
दीन दुखी को देखकर,
झरते नैना कोर।
सबअँधियारा दूर कर,
करता शीतल भोर।।
महक रही मैं इत्र-सी,
अंतस खिले सरोज।
अपने मन के भाव में,
खुद की करती खोज।।
अपने मन के भाव में,
खुद की करती खोज।
शब्दों के मोती सजा
मैं लिखती हर रोज़।।
-वेधा सिंह
स्वरचित