अपने गम में रुलाकर।
तमाशा बन गया हूँ तुम्हारी महफ़िल में आकर।
खूब इज्ज़त दी तुमनें हमको मेहमान बनाकर।।1।।
कत्ल कर देते तुम शौक़ से इश्के वफ़ा बनकर।
तुमको मारना ना था मुझे मेरी इज्जत गिराकर।।2।।
हम तो थे ही शरीफ हमेशा शराफत ही दिखाते।
देख मर गए तेरी महफ़िल में इसको दिखाकर।।3।।
इक बार तो कहते हमे तुमसे इश्क़ नहीं है सनम।
हम चले जाते बज़्म से दिलेनादाँ को समझाकर।।4।।
मांगते क्या हो दीवानों से चाहने के तुम सुबूत।
परवाने ने की वफ़ा खुद को शम्मा में जलाकर।।5।।
कहा था तुमसे हमको चाहो या ना चाहो सनम।
एक दिन जाएंगे तुमको अपने गम में रुलाकर।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ