अपने ख़्वाबों को सजा लें !
अपने ख़्वाबों को सजा लें !
उड़ चलें….
आसमाॅं में उड़ चलें !
सजा लें….
अपने ख़्वाबों को सजा लें !
क्या पता….
वक्त कहीं ना निकल जाए !
हम सब….
हाथ मलते ना रह जाएं !
उड़ चलें….
चार दिन की ही ज़िंदगी है ,
पल दो पल की ही ख़ुशी है ,
बड़ी मुश्किल से ये जो मिली है ,
इक पल भी व्यर्थ नहीं करनी है ,
हरेक पल से ही बड़ी उम्मीद बॅंधी है!
सजा लें, अपने ख़्वाबों को सजा लें !!
दो वक्त की रोटी की खातिर…
दिन-रात मेहनत हम करते हैं !
त्याग, तपस्या और समर्पण का ,
नया इतिहास रोज़ रोज़ रचते हैं !
वक्त तो अपनी अनवरत गति से….
दिन रात टिक टिक कर चलते हैं !
इस पल को जो हम यूॅं ही गॅंवा दें,
गुजरते वक्त की कीमत ना समझें,
भावनाऍं मन की कुंठित ही रखें ,
तो यूॅं ही घूट घूट कर मर जाएंगे !
खुद को माफ़ न कभी कर पाएंगे !
सजा लें,अपने ख़्वाबों को सजा लें !!
तक़दीर अपनी तो बदल नहीं सकते !
भगवान से तो कभी लड़ नहीं सकते !
हाॅं,विनती उनसे अवश्य ही कर सकते!
भक्तिपूर्ण विनती ईश्वर भी सदा सुनते !
सबका ही दु:ख वो पल भर में हर लेते !
अनंत खुशियों से सबका दामन भर देते !
हर घर में वे सुख,शांति व समृद्धि ला देते !!
संक्षेप में हम कुछ यूॅं कह जाएं…
कि ख़्वाबों को अपने सजाएं…
कर्त्तव्य अपने सदा करते जाएं…
संग ईश्वर का आशीर्वाद भी पाएं…
और हर रोज़ आसमाॅं में उड़ते जाएं…
तो क्यों नहीं हम इन सूत्रों को अपनाएं…
कि सजा लें…. अपने ख़्वाबों को सजा लें !
दिखा दें,अपनी ताकत व जज़्बे को दिखा दें !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण
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