अपनी लकीर बड़ी करो
अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा, विकास और प्रचार-प्रसार करना हरेक व्यक्ति का अधिकार है। हम जिस संस्कृति में जन्म लेते हैं, जिसमें हमारा पालन-पोषण होता है, जिसमें हम साँस लेते हैं ,वह हमारी रग-रग में रच-बस जाती है। इस बात से किसी को इंकार नहीं हो सकता। अगर कोई इस बात से असहमति व्यक्त करता है,तो वह झूठ बोलता है।हाँ, कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि जब जागरूक माता-पिता ,जो अपनी संस्कृति से दूर रहते हैं, परंतु अपनी संस्कृति से लगाव होने के कारण अपने बच्चों में वे संस्कार विकसित कर पाते हैं , जिससे बच्चे अपनी संस्कृति से कुछ सीमा तक जुड़े रहते हैं।
भारतीय नववर्ष का आरंभ विक्रमी संवत् ,चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।इस दिन का अपना विशिष्ट महत्व है।ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण आरंभ किया था।इस दिन से ही चैत्रीय नवरात्रि का आरंभ भी होता है।वैसे भारतवर्ष के अलग-अलग प्रांतों और धर्मों और संप्रदायों में नववर्ष भिन्न-भिन्न नामों और तिथियों को मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं तो पंजाब में बैसाखी के नाम से जाना जाता है।आंध्रप्रदेश में उगादी के रूप में नववर्ष मनाया जाता है तो तमिलनाडु में पोंगल।मारवाड़ी नया साल दीपावली के दिन और गुजराती नया साल दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है।इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मुहर्रम वाले दिन नयासाल मनाते हैं।ईसाई धर्म को मानने वाले लोग एक जनवरी को अपना नववर्ष मनाते हैं।
यदि विक्रमी संवत् के आरंभ की बात छोड़ दी जाए तो हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र माह की प्रतिपदा को हमारा नया साल प्रारंभ होता है क्योंकि वह साल के पहले महीने का पहला दिन होता है, जिस दिन हम होली खेलते हैं। एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं, गले मिलते हैं तथा तरह-तरह की मिठाइयाँ खिलाते हैं। यह हमारा नववर्ष मनाते का अनोखा तरीका है। होलिका दहन वाला दिन वर्ष का अंतिम दिन होता है-फाल्गुन मास की पूर्णिमा। इस दिन हम समस्त बुराइयों और विकारों को भस्मीभूत कर एक नए वर्ष की शुरुआत का निश्चय करते हैं।
भारतीय कलेंडर को पंचांग कहते हैं, जिसका तात्पर्य है- पंच+अंग। ये पाँच अंग-नक्षत्र ,तिथि,योग ,करण और वार हैं।भारतीय ज्योतिष में इनका विशेष महत्व माना गया है।नक्षत्रों की संख्या सत्ताइस है। तिथियों की संख्या पंद्रह होती है।पंद्रह कृष्णपक्ष में और पंद्रह शुक्लपक्ष में। प्रत्येक माह को दो पक्ष में बाँटा गया है- कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष।कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या एवं शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा होती है।योग की संख्या सत्ताइस है जबकि करण की संख्या ग्यारह है।वार का अर्थ है- दिन।एक सप्ताह में सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार नामक सात दिन होते हैं।हम सभी भारतीय अपने व्रत और त्योहार अपने भारतीय पंचांग के अनुसार ही मनाते हैं। भले इसके लिए हमें उन व्यक्तियों का सहारा लेना पड़ता हो जिन्हें हम आम बोलचाल की भाषा में पुजारी या पंडित कहते हैं।ये वे लोग होते हैं जिन्हें धार्मिक अनुष्ठान और कर्मकांड की विधियाँ ज्ञात होती हैं। वैसे आजकल ग्रेगेरियन कलेंडर में भी दिनांक के साथ तिथि का उल्लेख रहता है जिससे लोगों को तिथि और पर्व का ज्ञान हो जाता है।आज यदि शहरों में निवास करने वाले तथाकथित संभ्रांत लोगों से पूछा जाए कि एक जनवरी 2022 को भारतीय पंचांग के अनुसार किस माह की कौन सी तिथि है तो शायद ही कोई यह बता पाए कि पौष कृष्णपक्ष की त्रयोदशी है।
भारतीय संस्कृति को मानने वाले लोगों को इन मूलभूत बातों की जानकारी होनी चाहिए , यदि नहीं है तो इसमें किसी का क्या दोष।आजकल एक नया चलन देखने में आता है विरोध करने का। मुख्यतः सोशल मीडिया पर इस तरह के विरोध अभियान खूब चलाए जाते हैं।कोई कहता है हमें क्रिसमस नहीं मनाना तो कोई नयासाल न मनाने का झंडा उठा लेता है। मगर इस तरह के विरोध अभियान सफल नहीं हो पाते। इसका मूल कारण है स्वीकृति का अभाव।सभी को ज्ञात है कि अंग्रेजों ने अपनी विस्तारवादी नीति के चलते दुनिया के अधिकांश देशों पर कब्जा कर रखा था।उनके साम्राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था। वे जहाँ -जहाँ गए उन्होंने अपनी संस्कृति का न केवल प्रचार-प्रसार किया अपितु उसे स्थापित भी किया और उस देश की संस्कृति को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि ग्रेगेरियन कलेंडर का नववर्ष आज विश्वभर में धूमधाम से मनाया जाता है।
इससे छुटकारा पाने का उपाय अपनी लकीर को बड़ा करना है न कि दूसरे की लकीर को मिटाकर छोटा करना। जितनी शक्ति और ऊर्जा दूसरे की लकीर को छोटी करने में लगाएँगे ,उतनी यदि अपनी लकीर को बड़ी करने में व्यय करेंगे तो परिणाम निश्चित ही सकारात्मक होंगे। इसके लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम संसद, विधानसभाओं और सरकारी तंत्र में काम-काज के लिए भारतीय पंचांग का प्रयोग करने के लिए नियम बनाने का सरकार पर दबाव बनाए।आज तक किसी राष्ट्रवादी व्यक्ति ने ऐसा कोई लिखित या मौखिक बयान नहीं दिया है।बस, सभी लोगों की भावनाओं को भड़काने में लगे रहते हैं। नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के जो लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति से अनजान है उन्हें इसकी जानकारी दें।वैसे दैनिक जीवन में घुसपैठ कर चुके ग्रेगेरियन कलेंडर से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है।जिस देश की नई पीढ़ी को अपनी गिनती नहीं पता ,अपने पंचांग के अनुसार वर्ष के माह नहीं पता,वह भारतीय पंचांग की बारीकियों और खूबियों को समझने में सफल तो होगी पर समय लगेगा। जब तक योजनाबद्ध रूप में नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से परिचित कराने का काम नहीं किया जाता , तब तक किया जाने वाला विरोध पारस्परिक वैमनस्य और कटुता को ही जन्म देगा और ये बातें देश के विकास में बाधक ही सिद्ध होंगी।
डाॅ बिपिन पाण्डेय