अपनी जमीं पर…
अपनी जमीं पर – – – – –
आसमां-सा ऊपर उठकर,
झिलमिल सपनों में खो जाऊँ !
अपनों की ही आर्त्त पुकार,
एक बधिर वत् सुन न पाऊँ !
सागर – सी गहराई पाकर,
अपने सुख में डूबूँ उतराऊँ !
गम में किसी के गमगीं होकर,
आँसू भी दो बहा न पाऊँ !
तो नहीं चाहिए ऐसी उच्चता,
और न ऐसी गहराई ।
इससे तो मैं बेहतर हूँ,
अपनी जमीं पर ठहरा ही ।
अपनी जमीं पर अपनों के सँग,
सुख – दुख मिलकर बाटूँ ।
पनप रही जो खाई बैर की,
प्यार से उसको पाटूँ ।
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
“चाहत चकोर की” से