अपना पथ स्वयं बनाना है
हिमगिरि से लेकर सागर तक
बनकर प्रवाह बढ़ जाना है
हे अविरल, अविचल जल तुमको
अपना पथ स्वयं बनाना है
थलचर या जलचर जीव-जन्तु
जल, चाहे नभचर हों परन्तु
हर भीमकाय हर सूक्ष्म तन्तु
का तृप्त कंठ कर माना है
हे हर स्वरूप में विद्यमान
अविनाशी जल तेरा विधान
हिम, वाष्प, तरल प्रत्येक रूप
तुमने जाना-पहचाना है
हे अविरल अविचल जल तुमको
अपना पथ स्वयं बनाना है