अपनापन: कुछ दोहे
अपनापन: कुछ दोहे
// दिनेश एल० “जैहिंद”
अब के लोगों में नहीं,
अपनेपन का भाव !
संस्कार सब भूल गए,
प्रीत का है अभाव !!
संस्कृति अब मारी गई,
लौट गया संस्कार !
उदारता बाकी नहीं,
बचा कहाँ सुविचार !!
धैर्य का अब पतन हुआ,
फल माँगे तत्काल !
हाड़ – मास का आदमी,
बचा सिर्फ कंकाल !!
मतलब से अपना दिखे,
बे-मतलब सब गैर !
मतलबी सन्तान रखे,
मात – तात से बैर !!
रिश्तों की अर्थी चली,
अपना पन का अंत !
छात्र अब कहाँ डालते,
अक्छरों पर हलन्त !!
तिरसठ का ये आंकड़ा,
छत्तीस धरा भेष !
मियां सोए एक खाट पे,
बीवी राखे द्वेष !!
संबंधों में लस नहीं,
बे-लस हैं संबंध !
दूर हुई आत्मीयता,
बे-बहर हुए छंद !!
“मैं” की बिंदी गुम गई,
निकला “में” का बिंद !
भाव हीन मानव हुआ,
ठीक कहे “जैहिंद” !!
============
दिनेश एल० “जैहिंद”
14.06 2019