अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस
सर्वप्रथम नारी शक्ति को नमन् करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई देता हूँ। आज ही नहीं, वरन् साल का पूरे 365 दिन महिला दिवस होता है। सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के अप्रतिम संघर्ष एवं उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करते हुए सन् 1975 में 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) घोषित किया। यह महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का जश्न मनाने का अवसर है। यह महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और लैंगिक समानता हासिल करने के संघर्ष को याद करने का दिन है।
महिलाओं ने समाज के विकास में अहम भूमिका निभाई है। आज नारी के बिना समग्र विकास की परिकल्पना नहीं की जा सकती। निःसन्देह 21वीं सदी नारी सशक्तिकरण का युग है। वे घरेलू कामकाज के अलावा समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी अपने अदम्य साहस एवं कौशल का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं हैं। उनका योगदान शिक्षा, सेवा, खेल, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रशासन, जल-थल-नभ सभी क्षेत्रों में काबिले-तारीफ है।
कोई कुछ भी कहें, लेकिन नारी अब अबला नहीं रही। नारियों से आह्वान करता हूँ :
पूरे कर लो
जीवन के सारे अरमान ;
ऐ नारी,
तुम्हें भी हक़ है पाने का
अपने हिस्से का आसमान।
बेशक आज सामाजिक नजरिये में व्यापक बदलाव आया है, फिर भी मैंने साहित्य सेवा के माध्यम से तथा महिला एवं बाल कल्याण विभाग का प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते भी नारी अधिकारों की पुरजोर वकालत करते हुए नारियों की समस्याओं, संघर्ष एवं उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए अब तक रचित कुल 52 कृतियों में से 3 काव्य-कृतियाँ क्रमशः ‘आधी दुनिया’, ‘बराबरी का सफर’ और ‘ देवी या दासी?’ नारियों पर ही लिखी है। इसके अलावा ‘सौदा’, सौन्दर्य-स्वामिनी’, ‘देवी’, ‘उजाले की ओर’ इत्यादि दर्जनों कहानियाँ एवं कहानी संकलन लिखकर नारियों के हक में आवाज उठाई है।
मेरे द्वारा रचित विश्व में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले उपन्यासों में से एक “अदा” उपन्यास में भी मैंने सेक्स वर्करों की दर्द में डूबी जिन्दगी पर प्रकाश डालते हुए इस सार्वभौम समस्या की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट किया है। मसलन :
मर्यादा की जंजीरों में जकड़ी हुई नारी
जिन्दगी को हर पल ढो रही,
औरों के लिए फूल बिछाकर खुद ही
काँटों की सेज पर सो रही।
मुझे विश्वास है कि आने वाला कल एक नया उजाला लेकर आएगा। और, इस उजाले में नारियों के सुख, शान्ति, समृद्धि, विश्वास और तरक्की निहित होगी। मेरा यही कहना है :
ऐ नारी,
इतिहास पलटकर मत देखो
खुद डालो नींव इतिहास की,
उठो, जागो, तोड़ो, लांघो
देहरी सारी ब्रह्म-फाँस की।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
श्रेष्ठ लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।