अनुशासन
अनुशासन से ही मनुजता की पहचान है,
अन्यथा मनुज फिर पशु के समान है।
अनुशासन ही उच्चता का सोपान है,
सड़ते संस्कारों का निदान है।
अनुशासन से ही जन्म लेते संस्कार हैं,
बिना संस्कार जन्म लेते फिर मनोविकार हैं।
सभ्यता का पाठ नियम ही तो सिखाते हैं,
नियम बिना अराजक तत्व सर उठाते हैं।
उद्देश्य यही अपना बनाकर मनुज रखो,
अपने देश औ’ समाज के उसूलों पर चलो।
अनुशासन ही मनुज को सभ्य बनाता है,
अनुशासन से ही समाज खुली श्वास पाता है।
जहाँ सद्नियम और अनुशासन नहीं होता,
वहाँ हर मनुज अपनी मनुजता सतत खोता।
बिन उद्देश्य के जीवन नीरस ही तो होता है,
अनुशासन बिना घर का तो विधाता ही भाग्य होता है।
जैसा मैंने समझा
सोनू हंस