अनुभव का वृतांत (भाग-1)
एक शिक्षक ने छात्र को, जड़े जोर के थप्पड़,
स्तब्ध रह गई मैं, कुछ यूँ अचरज में पड़कर ।
गूँज उस थप्पड़ की, कुछ इस कदर गूँज रही थी,
क्या बताऊँ दोस्तों, मेरी रूह तक काँप उठी थी ।।
करुणा से हृदय मेरा, तब कुछ और ही मचल उठा था,
जब संवेदना भरे नैनों से, उस छात्र ने मेरी ओर देखा था ।
एक ही प्रश्न उस समय, मेरे मन-मस्तिष्क में घूम रहे थे,
क्या शिक्षा देने के, यही विकल्प शेष रहे थे …?
मन-मसोस कर जब मैं, चली अपनी कक्षा की ओर,
तभी उस छात्र ने, दबी नज़रों से देखा मेरी ओर ।
भुलाकर अपने दर्द को, उसने मुझे आवाज़ लगाई,
मैं बोली, “चुप शैतान!, नहीं तो पड़ेगी फिर पिटाई” ।।
प्रतिउत्तर के रूप में, छात्र ने अपनी व्यथा सुनाई,
मैडम हमें तो आदत है, आप क्यों घबराई …?