अनुकरण
लघुकथा
अनुकरण
*अनिल शूर आज़ाद
अभी-अभी वह फिल्म ‘दीवार’ का शो देखकर निकला था। अमिताभ के स्वाभिमान और शूरता का जोरदार प्रभाव पड़ा था उस पर। वह भी अपने हीरो का अनुकरण करेगा, उसने ऐसा निश्चय किया।
जूते पॉलिश कराने के पश्चात ग्राहक का फेंका सिक्का उसके घुटने से टकराकर गिरा तो, एकाएक उसके भीतर का ‘अमिताभ’ जाग उठा। “ए जनाब..पैसे उठाकर हाथ में दीजिए!” अमिताभाना अंदाज़ में उसने मांग की।
“अरे पिद्दी से छोकरे, तेरी ये मजाल..” कहते उन महाशय ने उसे बुरी तरह थपड़ा दिया।
पीट-पाटकर ग्राहक अपने रास्ते चला गया। वह वहीं पड़ा रिरियाता रहा।
(रचनाकाल : वर्ष 1985)